चैत्र नवरात्रि २०२४: कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजाविधि की जानकारी

चैत्र नवरात्रि 2024: देवी शक्ति का उत्सव:

चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व के आगमन के साथ ही, हम सभी भक्त एक महान उत्सव के रूप में तैयार हो रहे हैं। यह नौ दिनों का उत्सव हमें परम ब्रह्म शक्ति की उपासना में लीन होने का मौका देता है, जिससे हम अपने दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ, देवी भागवत की कथा से एक महत्वपूर्ण सन्देश निकलता है। अनुसार, दुर्गा देवी ही सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में प्रकट होती हैं। उन्होंने रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार किया और असंख्य रूपों को धारण किया। नौ दिवसीय उत्सव में, हम इन नौ प्रमुख रूपों (मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री) की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद का आदर्श अनुभव करते हैं। यह उत्सव हमें अपने आत्मा के पावन अनुभव की ओर ले जाता है और हमें समस्त दुखों और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करता है। इस चैत्र नवरात्रि में, हम सभी आदर्श भक्ति और उत्साह के साथ देवी शक्ति का स्वागत कर रहे हैं, जिससे हमारी जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार हो। नवरात्रि का प्रत्येक दिन  देवी के विशेष रूप को समर्पित होता है, और हर रूप की उपासना से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। पुराणों में कहा गया है कि इन नौ दिनों में देवी मां पृथ्वी पर आकर अपने भक्तों के सभी कष्टों को हरती हैं और सुख, सौभाग्य, विद्या, दीर्घायु प्रदान करती हैं। इसलिए, नवरात्रि में माँ भगवती की साधना का श्रेष्ठ समय माना जाता है। इन नौ दिनों में पांच ज्ञानेंद्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ और मन जो ग्यारह इंद्रियों को संचालित करता है, वही परम शक्ति है। इनकी श्रद्धाभाव से आराधना करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि में देवी दुर्गा मां की पूजाविधि

नवरात्रि के दिनों में घर को साफ-सुथरा करना और मुख्य द्वार पर स्वास्तिक के चिन्ह को स्थापित करना एक प्राचीन परंपरा है। इसके साथ ही, दरवाजे पर आम और अशोक के ताजे पत्तों का तोरण लगाना भी सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। मान्यता है कि माता की पूजा के समय उनके साथ तामसिक शक्तियाँ भी आती हैं, लेकिन शुभ ऊर्जा को बनाए रखने के लिए मुख्य द्वार पर बंदनवार लगाया जाता है। पूजा के दिन सुबह स्नान करके माता दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित किया जाता है। उनके बाएं तरफ श्री गणेश की मूर्ति भी रखी जाती है। पूजा में जौ का बोई जाता है, जो समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। मां की आराधना के समय नवार्ण मंत्र का पाठ किया जा सकता है और पूजा सामग्री को चढ़ाया जा सकता है। माता दुर्गा की पूजा में घी का दीपक जलाते हुए ‘ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म’ मंत्र का पाठ किया जाता है और आरती दी जाती है। इस पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह पूजा मानव जीवन में स्थिरता, समृद्धि, और आनंद का संदेश लाती है।

देवी मां के मंत्र

नवरात्रि के पवित्र अवसर पर मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को अद्वितीय फल प्राप्त होता है। इन मंत्रों की शक्ति से जीवन में भय और बाधाएं दूर हो जाती हैं, साथ ही सुख-समृद्धि का अनुभव होता है।

1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में समस्त मंगल सिद्ध होते हैं। मां दुर्गा के प्रति शरणागति का प्रकट किया जाता है।

2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

 इस मंत्र का उच्चारण करने से मां काली की कृपा प्राप्त होती है और सभी भयों और कष्टों का नाश होता है।

3. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै

 यह मंत्र मां चामुण्डा की प्रशंसा करता है और उनकी कृपा को आमंत्रित करता है। इसका जाप करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।

ये मंत्र नवरात्रि के उत्सव में विशेष भाव से जपने से आत्मा की शुद्धि होती है और मनुष्य को दिव्य शक्तियों का अनुभव होता है। इन मंत्रों का नियमित जाप करके व्यक्ति अपने जीवन में उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होता है।

चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

कलश स्थापना एक प्रमुख संस्कार है जो नवरात्रि के अवसर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे सम्मानित करने के लिए विशेष मुहूर्त का चयन किया जाता है ताकि कलश स्थापना और पूजन में सम्मान का उचित माहौल हो। चैत्र नवरात्रि के दिन 09 अप्रैल को कलश स्थापना के लिए उत्तम मुहूर्त 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक होगा, जो कि अभिजीत मुहूर्त के रूप में जाना जाता है। इस मुहूर्त में कलश स्थापना, पूजा-पाठ और शुभ कार्यों के लिए सबसे उत्तम शर्तें होती हैं। इसके अलावा, चैत्र नवरात्रि के अन्य मुहूर्तों में भी शुभ और महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जैसे कि ब्रह्मा मुहूर्त, विजय मुहूर्त, गोधूलि मुहूर्त आदि। इन मुहूर्तों में भी कलश स्थापना और पूजन का आयोजन किया जा सकता है, जिससे जीवन में सफलता और खुशहाली का संकेत मिलता है। इसके साथ ही, रात्रि में अमृत काल और निशिता काल भी पूजन के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इन कालों में पूजा करने से धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ होता है। सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग भी कलश स्थापना के लिए अनुकूल माने जाते हैं, जो समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस तरह, चैत्र नवरात्रि के अवसर पर कलश स्थापना का उचित मुहूर्त चुनकर पूजन का आयोजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि व्यक्ति अपने जीवन में समृद्धि, खुशहाली और शांति का अनुभव कर सके।

नवरात्रि की प्रसिद्ध कहानियाँ

नवरात्रि के उत्सव के पीछे कई प्रसिद्ध कहानियाँ और लोक कथाएं छिपी हैं, जो हमें धार्मिक और सामाजिक संदेशों से भरपूर ज्ञान प्रदान करती हैं। ये कहानियाँ हमें नैतिकता, साहस, और शक्ति के प्रति प्रेरित करती हैं।

माँ शैलपुत्री की कथा:

 नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। उनकी कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपनी प्रिय पत्नी पार्वती के साथ खेलते समय उनकी पगड़ी गिरा दी थी। विश्व भयभीत हो गया कि इससे परमात्मा का कोप प्राप्त होगा। तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि वह पगड़ी उत्तर प्रदेश के पहाड़ों में गिरी है और वहां स्थित पर्वती देवी के रूप में उसका पूजन करें। इसके बाद से ही वे माँ शैलपुत्री के रूप में पूजी जाने लगीं।

माँ ब्रह्मचारिणी की कथा:

 दूसरे दिन की पूजा माँ ब्रह्मचारिणी की जाती है, जो तपस्या और संयम की प्रतिक हैं। उनकी कथा के अनुसार, पार्वती ने भगवान शिव के प्रिय ब्रह्मचारी रूप में उनका ध्यान किया था ताकि उनके प्रिय का ध्यान रखते हुए उन्हें पति का स्थान प्राप्त हो।

माँ चंद्रघंटा की कथा:

 तीसरे दिन की पूजा माँ चंद्रघंटा की जाती है, जो शांति और सौभाग्य का प्रतीक है। उनकी कथा के अनुसार, जब माँ पार्वती ने भगवान शिव की पत्नी के रूप में उनका ध्यान किया तो उन्होंने अपने भक्तों को सौभाग्य और सशक्ति की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दिया।

माँ कुष्माण्डा की कथा:

चौथे दिन की पूजा माँ कुष्माण्डा की जाती है, जो भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं। उनकी कथा के अनुसार, जब माँ पार्वती ने अपने विशाल रूप को धारण किया, तो उनकी खाल से अनेक बड़े-बड़े मात्रासुरों का नाश हुआ।

ये कहानियाँ नवरात्रि के उत्सव को अधिक महत्वपूर्ण और रोमांचक बनाती हैं, जिससे हमें धार्मिक और नै

तिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करती हैं। ये कहानियाँ हमें साहस, विश्वास और प्रेम का संदेश देती हैं, जो हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की ओर अग्रसर करती हैं।

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Vijay Pathak, author of "Rangoli News," intertwines tradition and modernity, capturing the essence of Indian culture in vibrant narratives that celebrate diversity and resonate across generations.

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